अफसरी के ठाठ और आचरण नियमों की फांस


कल मैने अपनी मजबूरी व्यक्त की थी कि मै‍ ब्लॉग पर एक सीमा तक लिख सकता हूं, उसके आगे बोलने के लिये मुझे अपने रिटायरमेण्ट तक रुकना पड़ेगा. बहुत से लोगों ने टिप्पणियों में कहा कि वे मेरे डिस्क्लोजर के लिये मेरे रिटायरमेण्ट का इंतजार नहीं कर सकते. वैसे मुझे कोई मुगालता नहीं है –Continue reading “अफसरी के ठाठ और आचरण नियमों की फांस”

सिंगूर जैसी कशमकश और बढ़ेगी भविष्य में


सिंगूर और नन्दीग्राम, दिल्ली के पास के स्पेशल इकनॉमिक जोन, सरदार सरोवर … और भी कितने ऐसे प्रॉजेक्ट है जिनमें स्थानीय ग्रामीण/आदिवासी जनता का टकराव परिवर्तन की ताकतों से हो रहा है. अंतत: क्या होगा? देश अगर तरक्की करेगा तो व्यापक पैमाने पर औद्योगीकरण होगा ही. कृषि का मोड-ऑफ प्रोडक्शन ऐसा नहीं है जो विकासContinue reading “सिंगूर जैसी कशमकश और बढ़ेगी भविष्य में”

कुल्हाड़ी में धार देने की उपेक्षा कर सकते हैं हम?


अगर मुझे आठ घण्टे लगाने हैं लकड़ियां चीरने में, तो मैं छ घण्टे लगाऊंगा कुल्हाड़ी की धार देने में – अब्राहम लिंकन इस फटा-फ़ट के जमाने में अब्राहम लिंकन का उक्त कथन अटपटा सा लगता है. कुल्हाड़ी में धार देने की बजाय लोग चिरी चिराई लकड़ी खरीदने में (उत्तरोत्तर) ज्यादा यकीन करने लगे हैं. मैगीContinue reading “कुल्हाड़ी में धार देने की उपेक्षा कर सकते हैं हम?”