किशोर वय की लड़कियां थीं। वे यह पूजा-अनुष्ठान किस लिये करती होंगी? हर व्यक्ति कोई न कोई ध्येय गंगा स्नान और पूजा से जोड़ता है। उनके सामने क्या ध्येय होगा?
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डईनिया का बुनकर पारसनाथ
यहां पारसनाथ जैसे चरित्र भी दिख जाते हैं – कम ही दिखते हैं; पर हैं; जिन्हे देख कर लगता है कि मूलभूत सरलता और धर्म की जड़ें अभी भी यहां जीवंत हैं। संत कबीर और रैदास की जीवन शैली और चरित्र अभी भी गायब नहीं हुये हैं सीन से।
सुनील ओझा जी और गाय पर निर्भर गांव का जीवन
इस इलाके की देसी गौ आर्धारित अर्थव्यवस्था पर ओझा जी की दृढ़ सोच पर अपनी आशंकाओं के बावजूद मुझे लगा कि उनकी बात में एक कंविक्शन है, जो कोरा आदर्शवाद नहीं हो सकता। उनकी क्षमता भी ऐसी लगती है कि वे गायपालन के मॉडल पर प्रयोग कर सकें और उसके सफल होने के बाद उसे भारत के अन्य भागों में रिप्लीकेट करा सकें।
