मेरे समधी, रवींद्र कुमार पाण्डेय का कोरोना संक्रमण और उबरना


“यह तो कोरोना है, जिसकी न कोई दवा है न कोई पुख्ता इलाज। बस देख सँभल कर चलना रहना ही हो सकता है। जिस तरह के कामधाम मैं हम हैं वहां अकेले एकांत में तो रहा नहीं जा सकता। लोगों से सम्पर्क तो होगा ही। गतिविधि तो रहेगी ही। बस, बच बचा कर वह कर रहे हैं।”

स्वामी अड़गड़ानंद जी के आश्रम में


धीरे धीरे चल रही थी उनकी कार। रास्ते में आश्रम वासी हाथ जोड़ खड़े हो जाते थे और वाहन सामने से गुजरते समय दण्डवत प्रणाम करते थे।

राजधर – साइकिल पर सब्जी


दो महीना पहले तमिलनाडु से गांव लौटे थे राजधर। वहां कोयम्बटूर में किसी धागा बनाने वाली कम्पनी में कारीगर थे। अभी वापस जाने की नहीं सोची है। “कम से कम चार-पांच महीने तो यहीं रहना है।”

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