नदी का जल सचमुच साफ हुआ है


नदी यानी गंगा नदी। मेरे घर से कौआ की उड़ान के हिसाब से 2 किलोमीटर दूर। बड़ा फ्रीक्वेण्ट आना जाना है द्वारिकापुर के गंगा तट पर। स्नान नहीं करता गंगा में, पर दिखता तो है ही कि जल कैसा है।

गंगाजल वास्तव में साफ कहा जा सकता है। निर्मल।

उत्तरोत्तर सरकारों ने बहुत पैसा खर्च किया। गंगा जी के नाम पर बहुत भ्रष्टाचार भी हुआ। पर अंततः कोरोना वायरस को लेकर मानव जाति के भय के कारण निर्मल हो पाया गंगाजल।

गंगा किनारे राजन भाई

आज एक डोंगी थी मछेरों की। उसमें जाल लदा था। एक नाविक पतवार सम्भाले था, दूसरा बैठा था। दो बच्चे भी साथ थे, सवेरे की मौज में।

डोंगी

दो बड़ी बालू ढोने वाली नावें किनारे खड़ी की गई थीं। नौ बालू कर्मी सवेरे आ गए थे और काम शुरू करने के पहले बैठे गपशप कर रहे थे। थोड़ी ही देर में वे एक एक कर उठे और नावों में अपना स्थान ग्रहण करने लगे। काम के लिये नावें उस पार ले जाने वाले थे वे।

बालू खनन वाले

इन सभी चित्रों में जो चीज कॉमन है, वह है गंगाजी की स्वच्छ और प्रचुर जल राशि। जल वास्तव में आँखों को प्रिय लग रहा है! बचपन की गंगा की जल राशि की जैसी यादें हैं, गंगा वैसी ही दिख रही हैं।



जो वातावरण के परिवर्तन कोविड19 के कारण हो रहे हैं, उनकी लंबे समय तक निरंतरता संदिग्ध है। जालंधर से अगर हिमालय की चोटी आज नजर आ रही है, तो भविष्य में भी आएगी, ऐसा मान कर नहीं चल सकते। जब यातायात बढ़ेगा तो दिल्ली में ऑड – ईवन का रंगमंच सजेगा ही। गंगा के पानी की स्वच्छता जैसे आई है, वैसे चली भी जाएगी जब औद्योगिक अपशिष्ट उसमे फिर झोंका जाने लगेगा। इसलिए गंगा की स्वच्छता पर बहुत संतोष करने की या इतराने की आवश्यकता नहीं।

पर, फिलहाल जल की निर्मलता के चित्रों का आनंद लिया जाए! भविष्य में जो होगा, सो होगा!

द्वारिकापुर के गंगा तट के कल के चित्रों का समग्र

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

One thought on “नदी का जल सचमुच साफ हुआ है

  1. दो बातें बड़ी बेहतरी से छन कर सामने आई हैं – १) मनुष्य अगर घर में रहने को बाध्य हो जाए, प्रकृति के लिए इससे बेहतर वरदान नहीं हो सकता ; २) मनुष्य ज्यादा दिन घर में टिकेगा इस खुशफहमी में रहने पर वर्तमान का सौंदर्य भी फीका लगने लगेगा 🙂 वो अकबर की अंगूठी वाली कहावत है न – ये भी गुज़र जायेगा।

    लिखते रहिये सर 🙂

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