ट्विटर पर अतिशयोक्ति जी ने पूर्वांचल के कोविड19 मामले द्विगुणित होने के दिनों की गणना के ग्राफ प्रस्तुत किये हैं। इसके अनुसार पूर्वांचल (प्रयाग, भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर, वाराणसी, प्रतापगढ़, सोनभद्र और आजमगढ़) में कोरोना संक्रमण के मामले लगभग 5-7 दिन में दुगने हो रहे हैं।
भारतवर्ष में 18-20 दिन में आंकड़े द्विगुणित हो रहे हैं। स्पष्ट है कि पूर्वांचल में प्रवासी वापस लौटे हैं और साथ लाये हैं संक्रमण।
आज मर्यादी वस्त्र भण्डार पर गया था कुछ कपड़े लेने। मेरे साथ मेरी पत्नीजी भी थीं। दुकान वाले नौजवान; विवेक चौबे ने बताया कि वे दुकान में ग्राहकों के लिये नया फ्रिज लगवा रहे हैं। गर्मियों में शीतल जल की मांग करते हैं लोग। पर अपने लिये वे थर्मस की बोतल में गर्म पानी रखते हैं। कोरोना के संक्रमण से बचने के लिये पानी गुनगुना या गर्म ही पीते हैं। इसके अलावा काढ़ा – तुलसी, लौंग, कालीमिर्च, दालचीनी, गुरुच और अदरक को कूट कर पानी में उबाल कर दिन में तीन बार पीते हैं। विवेक ने हमें भी वही करने की सलाह दी। उसके अलावा यह भी जोड़ा कि आप लोग, अपनी आयु का लिहाज कर, बाहर न निकलिये। इस समय संक्रमण तेजी पर है। पास के गांव भक्तापुर में भी मामला संज्ञान में आ गया है।
आरोग्य सेतु एप्प पर हमारे घर के 500मीटर और 1 किलोमीटर की रेडियस में क्रमश: एक और चार लोग कोरोना संक्रमित के आसपास हो आने के कारण रिस्क की श्रेणी में आ चुके हैं। दस किलोमीटर की परिधि में तो रिस्क की श्रेणी में 136 लोग हैं। कुल मिला कर संक्रमण के विस्फोटक प्रसार के संकेत नजर आ रहे हैं।

विवेक चौबे की मर्यादी वस्त्र भण्डार कस्बे की बड़ी दुकान है। विवेक को भी ग्राहक न होने की बात कहते पाया। “होली के समय दुकान में दस लाख का नया सामान मंगा लिया था। उधार नहीं, नकद। यह अंदाज था कि इस साल लगन (विवाह) का सीजन अच्छा रहेगा, और मंगाया माल खप जायेगा। पर मंगाते समय ही कोरोना संक्रमण की बात होने लगी थी। यह अंदाज थोड़े ही था कि इतना भयंकर होगा वायरस और सब कुछ ठप हो जायेगा। दुल्हन की ड्रेसें और दुलहे के सूट जस के तस पड़े हैं दुकान में। दुलहा ही नदारद है। आगे शादियां होंगी भी तो वह रंगत नहीं आयेगी। पांच दस की बारात होगी। दुलहे को देखने वाले, वीडियो बनाने वाले ही नहीं होंगे तो वह सूट काहे को खरीदेगा? कोरोना का असर 2022-23 तक रहेगा।”
पूर्वांचल में प्रवासी आये हैं बड़ी संख्या में साइकिल/ऑटो/ट्रकों से। उनके साथ आया है वायरस भी, बिना टिकट। यहां गांव में भी संक्रमण के मामले परिचित लोगों में सुनाई पड़ने लगे हैं। इस बढ़ी हलचल पर नियमित ब्लॉग लेखन है – गांवकाचिठ्ठा https://gyandutt.com/category/villagediary/ |
रोटी कपड़ा और मकान – तीन महत्वपूर्ण अंग हैं मूलभूत आर्थिक गतिविधि के। भोजन में तो लोग कटौती करते दिख ही रहे हैं। सब्जियां, दालें और दूध कट हो गये हैं गांव के भोजन में। कपड़े का हाल विवेक ने बता दिया। इसके अलावा ह्वाइट गुड्स की नयी खेप आ ही नहीं रही। ऐसा दुकानदार बताते हैं। माल की डिमाण्ड साइड में समस्या है, पर सप्लाई साइड में समस्या उससे कम नहीं है। मकान के मार्केट में मंदी तो बहुत पहले से चल रही है। आगे और चलेगी।
खैर, अर्थव्यवस्था पर कहना, लिखना और विलाप करना तो चलता रहेगा; अभी जो मुद्दा सामने है; और जो विवेक चौबे ने कहा; मुझे और मेरी पत्नीजी को अपनी उम्र का ध्यान देते हुये बाहर निकलना बंद करना चाहिये। मेरे दामाद (विवेक पाण्डेय) और बिटिया इस बारे में बारम्बार कहते रहे हैं। उस बारे में कोई न कोई निर्णय लेना ही है।
सीनियर सिटिजन और रिटायरमेण्ट की जिंदगी जी रहे के लिये अपने आप को लॉकडाउन में रखना, एक व्यक्तिगत चुनाव के रूप में असम्भव तो नहीं ही है। पुस्तकें हैं, मोबाइल और किण्डल है, टेलीविजन है, नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम है। इसके अलावा भोर के समय, जब सूर्योदय हुआ नहीं होता, साइकिल ले कर घण्टा भर घूम आना भी निरापद है। उस समय गांव की सड़कों और पगडण्डियों पर कोई दिखता नहीं। निकलने पर यह भी नजर आयेगा कि लोग खेतों में निपटान के लिये भी जाते हैं, या मोदी सरकार के दिये शौचालय का उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग करने लगे हैं।
सवेरे पांच से छ का समय और साइकिल चलाना – अप्रतिम अनुभव होगा। उसमें गांव के एक नये रूप का दर्शन होगा। नये विषयों पर सोचने की ओर मस्तिष्क मुड़ेगा। शायद आवार कुत्तों से मुलाकात हो, उसका भी इंतजाम ले कर निकलना होगा। फिर छ बजे के बाद लॉकडाउन होगा। स्वैच्छिक लॉकडाउन!
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संक्रमण ग्रस्त होना या न होना – एक पतली सी लाइन से विभक्त होता है। उसमें एक ओर बचाव है, रोचकता है, प्रयोग हैं और सोचने, पढ़ने, लिखने की सम्भावनायें हैं; दूसरी ओर संक्रमण है, रोग है, अस्पताल है, अकेलापन है, परित्यक्त होने का दारुण दुख है और (शायद) मृत्यु भी है। निश्चय ही पहले विकल्प को चुनना है और दूसरे की कोई भी सम्भावना को नकारना है।
लोग लॉकडाउन खतम कर काम पर लौटने की सोचने लगे हैं। मैं अब तक (यह जानते हुये कि इस इलाके में कोरोना संक्रमण नहीं था) आसपास घूमने-टहलने-देखने की क्रिया जारी रखे था। अब सतर्क होने का समय है। अब व्यक्तिगत लॉकडाउन धर्म का पालन करूंगा।
स्थानीय खबरें और हिंदी अखबार (उनकी भाषाई और गुणवत्ता की कमजोरियों के कारण) मुझे प्रिय नहीं थे। किसी जमाने में जनसत्ता और दिनमान हिंदी सीखने-पढ़ने में रुचि हुआ करती थी। पर वह एक काल बाद छूट गये। अब स्थानीय खबरों की जरूरत महसूस होने लगी है। आसपास के जिलों में प्रवासी कैसे आ रहे हैं; उनकी क्या गतिविधियां हैं; कोविड19 के मामले कहां बढ़ रहे हैं; यह सब जानने के लिये हिंदी अखबारों को पढ़ना जरूरी हो गया है। रोज आधा घण्टा उनमें लग रहा है। यह बढ़ेगा। शायद उससे मेरी हिंदी भी परिष्कृत बने। कुछ तो नये शब्द मिलेंगे ही। रोज 3-4 नये शब्द संग्रह में बढ़े और उनका लेखन में प्रयोग हुआ तो आधी शती से हिंदी की जो ऐसी तैसी हो रही है, उसमें परिवर्तन हो!
कल मधुप ठाकुर जी ने ट्वीट में बताया कि एक श्वसनरोग विशेषज्ञ डा जीतेंद्र नाथ पाण्डे का कोविड19 के संक्रमण से निधन हो गया।
डा. पाण्डे सन 2003 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के विभागाध्यक्ष पद से रिटायर हुये थे और कई प्रमुख डाक्टरों को पढ़ाया था। डा. पाण्डे को अन्य रोगों की शिकायत भी थी। इसे को-मॉर्बिडिटी का नाम दिया जा रहा है। मैं अपने से उनकी तुलना नहीं कर सकता, पर को-मॉर्बिडिटी के नाम पर लगभग दो तिहाई सीनियर सिटिजंस को डाइबिटीज और उच्च रक्तचाप की शिकायत होती ही है। कुछ लोग लापरवाह होते हैं, कुछ नियमित दवा और परहेज से अपने पैरामीटर्स नियंत्रित रखते हैं। ऐसे में अपने को संक्रमण से बचाये रखना ही सही स्ट्रेटेजी है। अन्यथा, इस पर निर्भर नहीं कर सकते कि हमारी डाइबिटीज या हाइपर टेंशन नियंत्रण में था/है। डा. पाण्डे जैसे किसी व्यक्ति का जाना हमें आईना दिखाता है कि बच कर रहना चाहिये। उन्हें श्रद्धांजलि।
लेवल क्रॉसिंग पर आज उस वृद्ध को देखता हूं, जो सवेरे घर का दुआर बुहार कर कचरा घूरे पर ले जाने के लिये लेवल क्रासिंग खुलने का इंतजार कर रहा था। इस उम्र में भी काम पर लगा है। मैले कपड़े। उतना ही मैला चश्मा। कोई मास्क जैसी चीज नहीं। कोविड19 संक्रमण के बारे में वे कितना सजग होंगे और कितनी जानकारी होगी। इन्हें भी भगवान बचा कर रखेंगे। बचाये रखें!
