यह साल बॉयोग्राफी के नाम सही!

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नये साल का पहला महीना लगभग खत्म होने के कगार पर है। मैंने गुडरीड्स की साइट पर साल भर में 52 पुस्तकें पढ़ने का लक्ष्य रखा है। पर पठन, साल दर साल, किसी योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो पाता। पुस्तक ले कर बैठने पर व्यवधान बहुत होते हैं। पांच सात पेज एक सिटिंग में पढ़े तो बहुत माना जाये। कई पुस्तकें तो मात्र टॉयलेट की सीट पर बैठे पढ़ी जाती हैं। दिन में एक या दो बार दस दस मिनट के लिये। कवर टु कवर पढ़े जाने को अगर पुस्तक खत्म करना माना जाये तो बहुत कम पढ़ा जाता है। उसकी आठ दस गुना पुस्तकें चिड़िया-उड़ान की तरह – इधर उधर चुग कर पढ़ी हैं।

पिछले पांच साल से मेरा मुख्य जोर, प्रिय विषय ट्रेवलॉग रहा है। खुद मैंने यात्रायें बहुत कम की हैं। हिंदू परम्परा में चारधाम यात्रा का कॉन्सेप्ट है। वैसा कुछ नहीं किया। सेकुलर भ्रमण भी नहीं हुआ। कभी किसी जगह किसी और काम से गया तो आसपास की जगहें देख लीं। उनके बारे में कुछ लिख दिया – वह इतना सा ही ट्रेवल है। इस लिये मैंने भारत और विश्व को देखने समझने के लिये पुस्तकों का सहारा लिया। पूरी-आधी-तीही मिला कर करीब सौ पुस्तकें मैंने पढ़ी/देखीं यात्रा विषय पर।

अब सोचता हूं कि किसी अन्य विषय को लिया जाये।

दो विषय मुझे आकर्षित करते हैं – सौंदर्य और जीवनियां। बावजूद इसके कि मेरे आसपास और दुनियाँ में बहुत कुछ बदरंग है, भदेस है या क्रूर है; बहुत कुछ ऐसा भी है जो शुभ है, सुंदर है और माधुर्य युक्त है। सौंदर्य को पढ़ने के लिये मुख्य विधा कविता-पठन है। पर बाई-डिजाइन कविता मुझे समझ नहीं आती। कई पुस्तकें मेरे पास कविता की हैं; पर वे सामान्यत: उपेक्षित ही रहती हैं। लिहाजा, सौंदर्य/माधुर्य पर फिलहाल जोर देने का साहस नहीं कर रहा। वह भविष्य के लिये छोड़ता हूं।

जीवनी या बॉयोग्राफी दूसरा क्षेत्र है, जो आकर्षित करता है।

जब मैंने दूसरी पारी में गांव की ओर पलायन किया तो मन में यह था कि एक ऐसे पात्र की खोज करूंगा जो अंचल में रहते हुये, अपनी नैतिकता और चरित्र को (लगभग) साफ रखते हुये अपना जीवन वृत्तांत बताये और जिसे लिख कर न केवल उसके जीवन का, वरन गांवदेहात के पिछले पचास साल के परिवर्तन का लेखा-जोखा बन सके। यह व्यक्ति अगर अपने को गरीबी/पिन्यूरी से ऊपर उठा कर अपनी निगाह में सफल बन गया हो तो सोने में सुहागा।

पहले ही महीने में मुझे रामधनी मिले। उम्र लगभग मेरे जैसी होगी। कोलाहलपुर के दलित। कोलाहलपुर गंगा किनारे का गांव है और उनसे मुलाकात गंगा तट पर ही हुई थी। बुनकर थे, पर उम्र के साथ वह काम अब खत्म कर चुके थे। उन्होने बताया कि उनके बचपन में जितनी गरीबी थी, अब वैसी नहीं है। मुझे लगा कि रामधनी एक ऐसे पात्र हो सकते हैं, जिनकी जीवनी सुनी-लिखी जा सकती है। उनके बारे में मैंने 13 नवम्बर 2015 को पोस्ट भी किया था –

कल रामधनी से मिला घाट पर।
जाति से चमार पर बुनकर। उनका जीवन तुलसीराम (मुर्दहिया) से कितना अलग रहा? यह जानना है

Ramdhani, Dalit, Kolahalpur
रामधनी, बुनकर, कोलाहलपुर

उस समय मैंने ताजा ताजा मुर्दहिया पढ़ी थी। पर गांव में जब घूमा‌ टहला तो लगा कि मुर्दहिया में जिस प्रकार का दलित दमन का चित्रण है, वह अतिशयोक्ति पूर्ण है। मैं कई बार रामधनी को ले कर लिखने की सोचता था, पर नये नये पात्र मिलते गये। नई नई बातें होती गयीं और उनके साथ आठ दस घण्टे बिता कर उनके बारे में नोट्स बनाना/लिखना रह ही गया। रामधनी की सम्प्रेषण क्षमता अच्छी थी। वे एक बॉयोग्राफी के सही पात्र हो सकते थे। उनके माध्यम से 50 साल के गंगा किनारे के गांव में हुये बदलाव दर्ज हो सकते थे। … पर वह अभी तक नहीं हो सका।

दूसरे सज्जन हैं श्री सूर्यमणि तिवारी। उनपर मेरी कुछ ब्लॉग पोस्टें हैं। वे शुरू में मुझे अपने कामधाम में जोड़ना चाहते थे। पर मैं निर्द्वंन्द्व घूमने में रुचि लेता था। मेरी पत्नी जरूर कहती रहूं कि मैं उनके काम में या उनके अस्पताल में किसी प्रकार जुड़ूं। उनके बॉयोग्राफी लेखन में मुझे रुचि थी। इस अंचल के एक मामूली स्कूल मास्टर से शुरुआत कर किस प्रकार उन्होने यहां और अमेरिका में अपना व्यवसाय बनाया, बढ़ाया; वह एक सशक्त कथा होगी पिछले पचास साठ सालोंं के इस अंचल के परिदृष्य की।

उनके बारे में मैंने ब्लॉग पर लिखा था –

पता चला कि वे सेल्फ मेड व्यक्ति हैं. वे जब इंटर कॉलेज में थे, तभी उनके पिताजी का निधन हो गया था. पढ़ने मेें अच्छे थे तो पढ़ाई के बाद अध्यापक बन गये पास में जंगीगंज के एक स्कूल में. उन्हें जब यह समझ आया कि 3 भाई और दो बहनों का परिवार स्कूल मास्टरी की सेलरी में नहीं संभाला जा सकता तो घोसियां के अपने एक मित्र के पिताजी से कार्पेट व्यवसाय की बारीकियां समझी. 1971 में वह काम प्रारंभ किया और कालांतर में (1979 में) कार्पेट के बाजार, अमेरिका गए. वहां 1986 में अपने बेटे को ले जा कर पढ़ाया. इंजीनियर और एम बी ए बनाया.

सन 2004 में उनका अमरीका स्थित व्यवसाय 25 मिलियन (डालर) टर्नओवर का बना उनके अथक परिश्रम से.

Suryamani Tiwari
सूर्या ट्रॉमा सेण्टर और सूर्यमणि तिवारी

तिवारी जी से मेरा सम्पर्क बना रहा। उनके साथ अब भी मुलाकात-बातचीत होती है। पर उनके विषय में लिखने की बात आई गई हो गयी।

मुझे और भी पात्र दिखे। पास ही के एक गांव दिघवट में एक सज्जन मिले थे। कोई तिवारी जी हैं। मेरे अपने मित्र गुन्नीलाल पांड़े तो हैं ही। देवेंद्र भाई – मेरे सबसे बड़े साले साहब भी ऐसे एक पात्र हैं जो जमींदारी से आज नौकरी पेशा और गांव की प्रधानी-राजनीति का विस्तृत केनवास रखते हैं।

ये सभी सही पात्र हैं, जीवनी लेखन के। इनके माध्यम से आधुनिक समय में ताराशंकर बंद्योपाध्याय के गणदेवता या मुन्शी प्रेमचंद के कई उपन्यासों का सीक्वेल बन सकता है। पर वह सब करने के लिये मुझे जीवनी विधा का बारीकी से अध्ययन करना चाहिये।

शिखर से सागर तक

अब, इस साल मैं सोचता हूं कि ट्रेवलॉग छोड़ बायोग्राफी पठन पर मुझे जोर देना चाहिये।

अभी हाल ही में मैंने एक पुस्तक अज्ञेय की जीवनी पर – शिखर से सागर तक खरीदी है। अज्ञेय मेरे प्रिय लेखक हैं। उनकी जीवनी से प्रारम्भ करना एक अच्छी शुरुआत होगी।

मेरे पास कागज पर और किण्डल/कैलीबर/टैब-रीडर पर करीब 25-30 बॉयोग्राफी विषयक पुस्तकें हैं।

यह साल बॉयोग्राफी के नाम सही! :-D

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “यह साल बॉयोग्राफी के नाम सही!

  1. जीवनियों का इंतजार रहेगा। मुझे जीवनियाँ इतनी नहीं भाँति हैं। हाँ, कुछ समय पहले कृष्ण बलदेव वैद की डायरी शाम’अ हर रंग में पढ़ी थी। रोचक थी।आप जीवनियों के साथ डायरी भी जोड़ सकते हैं। विविधता भी आ जाएगी।

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  2. जीवनी में एक या दो पात्र कहाँ होते हैं? गाँव के परिवेश में जब कथा लिखेंगे तब उपरिलिखित सब के सब आ जायेंगे। ४ प्रकरण एक साथ चलाइये, सूत्रधार बनकर।आपकी दृष्टि में जो आयेगा, वह नया होगा और आनन्द देगा। बड़े लोगों की जीवनी के लेखक बड़ा साइकोलॉजी समझकर लिखते हैं, बड़ा ही कृत्रिम और नाटकीय। इन्हें पढ़ें अवश्य पर प्रभावित न हों। ख्यातिप्राप्त को ख्याति देना विशेष नहीं, अपने पात्रों को ख्याति दें। शुभेच्छायें।

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