कई समूह इस इलाके में प्लास्टिक की डेली-यूज की सस्ती वस्तुओं को बेचने के लगे हैं। वे मोबाइल, ऑनलाइन और मोटर साइकिल तथा हाईवे जैसी सुविधाओं का सही सही दोहन कर ग्रामीण जनता को सुविधा भी दे रहे हैं और अपना पेट भी पाल रहे हैं।
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इस गांव में भारत की अर्थव्यवस्था में ब्रेक लगे दिखते हैं
कुल मिला कर एक सवारी गाड़ी का रेक और चार बसें यहां मेरे घर के बगल में स्टेबल हैं। … यानी अर्थव्यवस्था को ब्रेक लग चुके हैं और उसे देखने के लिये मुझे अपने आसपास से ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ रहा।
इतना खर्च कर रहे हैं उम्मीदवार #गांवपरधानी में!
यह सब पैसा, जो इकठ्ठा हो रहा है, तुरंत पोस्टर लगाने, गाड़ी-मोटरसाइकिल का पेट्रोल भराने, चाय समोसा, जलेबी खिलाने, गांजा – दारू – भांग का प्रबंध करने या सीधे सीधे वोट खरीदने में जा रहा है। पगलाये हुये हैं उम्मीदवार!
स्मार्टफोन जाओ, साइकिल आओ
उसने मुझे दिखाया था कि साठ रुपये की पुड़िया में दो तीन दिन तक वे तीन चार लोग चिलमानंद मग्न रह सकते थे। वह ‘सात्विक’ आनंद जिसे धर्म की भी स्वीकृति प्राप्त थी। यह सब मैं, अपनी नौकरी के दौरान नहीं देख सकता था।
महुआ टपकने लगा है और अन्य बातें
बहेड़ा के फल गिरते महीना से ऊपर हो गया। अब महुआ भी टपकने लगा है। चार पांच दिन हो गये, आसपस टपक रहा है महुआरी में। बच्चे एक एक पन्नी (पॉलीथीन की थैली) में महुआ के फूल बीनने लगे हैं। जुनून सा दिखता है उनमें महुआ बीनने का।
राजबली के साथ कुछ समय – बसुला और कलम का मेल
मुझे उनका काम स्वप्निल लगता है और उन्हे मेरी साहबी। हम दोनो जानते हैं कि एक दूसरे से केवल बोल बतिया ही सकते हैं। आपस में मिलने का आनंद ले सकते हैं। न वे मेरा काम कर सकते हैं न मैं उनका।