
कल वैशाखी की दोपहर में रीता पाण्डेय ने नोटबुक में लिख कर मुझे थमाया – लो आज लिख दिया। थमाने का मतलब होता है कि लो, इसे टाइप कर पोस्ट करो। आज सवेरे सवेरे लिख कर पोस्ट शिड्यूल करनी है। लॉकडाउन काल में पत्नीजी से किसी टिर्र-पिर्र का जोखिम नहीं उठाया जा सकता। 😆
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आज तेरह अप्रेल 2020। आज वैशाखी है। जलियांवाला बाग की घटना की पुण्य तिथि। याद आता है कि किस तरह लोगों ने भारत भूमि के लिये अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे।
कई बार मन में सिहरन होती है – फ़ांसी पर चढ़ते समय उन लोगों को भय नहीं लगता था? कैसे जुनूनी लोग थे वे! भारत को जमीन का टुकड़ा भर नहीं समझते थे – मां के रूप में प्यार करते थे।
चाणक्य सीरियल में जब आचार्य विष्णुगुप्त कहते हैं – “उत्तिष्ठ भारत!”; या जब वे कहते हैं – “हिमालय से ले कर सिंधु की लहरों तक समग्र भारत एक है”; तो एक सनसनी सी होती है शरीर में।
मेरा भाई बोलता है कि चाणक्य सीरियल पढ़े लिखे लोगों के लिये है। पर मुझे लगता है कि इसे सभी को देखना चाहिये। समझ में कम आये तब भी। बच्चों को अभी समझ नहीं आयेगा, पर भविष्य में ये बातें समझ में आयेम्गी और उन्हे यह भी समझ आयेगा कि भारत के इतिहास को प्रस्तुत करने में किस तरह की छेड़छाड़ की गयी थी…।
कोरोनावायरस-संक्रमण से निपटने के लिये लॉकडाउन मौके पर ये सभी सीरियल (रामायण, महाभारत, चाणक्य) टेलीवीजन पर प्रस्तुत करने से आगामी पीढ़ी को एक मौका मिला है कि वे अपनी सभ्यता, संस्कृति और इतिहास के गौरव को समझ सकें।

रामायण उच्चतम आदर्शों की स्थापना का काल है। हर चरित्र अपने आदर्श की पराकाष्ठा पर है। पिता, पुत्र, भाई, पत्नी, मित्र सभी के साथ हर प्रकार से, यहां तक कि शत्रु के साथ भी, आदर्श व्यवहार करते नजर आते हैं श्रीराम। उन्होने लक्ष्मण, अंगद आदि से कहा – युद्ध की इच्छा से आये हुये वीर का उपहास नहीं किया जाता। वे खर के पुत्र के शव को पूरे सम्मान के साथ लंका भिजवाते हैं।
इसके उलट, महाभारत पूर्णत: व्यक्तिगत स्वार्थों पर आर्धारित है। अपने अपने बनाये संकुचित घेरे कोई तोड़ नहीं पाता। चाहे वे भीष्म हों, या युधिष्ठिर। धृतराष्ट्र, दुर्योधन और शकुनि अति महत्वाकांक्षा और कुटिलता की अति के स्तर पर हैं। कर्ण अपने को प्रतिशोध की दुनियां से बाहर नहीं निकाल पाता। विदुर एक चतुर और बुद्धिमान मन्त्री जरूर हैं; पर उनकी भी एक सीमा है और वे उसे पहचानते भी हैं। मुझे कुन्ती का चरित्र आकर्षित करता है। एक सुधी और साहसी महिला के रूप में, विपरीत परिस्थितियों में भी अपने पुत्रों को, जिसमें जो भी सम्भावना थी, उसे उस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ बनाया।
उस काल में जब स्वार्थ और कुटिलता अपनी चरम पर थी; एक ही व्यक्ति निर्लिप्त थे – श्री कृष्ण। किया सब कुछ पर आसक्ति किसी में नहीं। निर्विकार रहे। गोपियों के साथ रास किया। रुक्मिणी को द्वारिका हर ले गये। जितने प्रेम से माखन चुरा कर खाया, उतनी सरलता से शिशुपाल का वध भी कर दिया। गोकुल और मथुरा को बिना मोहमाया के त्याग दिया। रणछोड़ भी उन्हे ही कहते हैं। बिना शस्त्र उठाये सारी महाभारत के नियन्ता – क्या थे श्री कृष्ण?! प्रेमी, मायावी या निर्मोही?
कृष्ण के चरित्र को अभी और भी समझना बाकी है। वह कार्य आनेवाली पीढ़ी के जिम्मे है।