सवेरे की साइकिल सैर के दौरान इस उपहार ने मुझे हृदय के अन्दर तक सींच दिया। वापस लौटते समय पूरे रास्ते मैं विजयशंकर जी के बारे में ही सोचता रहा। अगर एक किसान – एक मार्जिनल किसान इतनी दरियादिली रखता है तो मुझे तो अपने दिल को और भी खोलना चाहिये।
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तालाब में फंसी घायल नीलगाय
नीलगाय किनारे लगा। उसके एक पैर में शायद चोट लगी थी। इसी कारण वह कुत्तों के चंगुल में आ गया था। भयभीत था और उसकी दुम उसके पृष्ठभाग में दबी हुई थी।
रवींद्रनाथ दुबे – एन.आर.वी. और शहर-गांव का द्वंद्व
रवींद्रनाथ जी अपने गांव से हर समय किसी न किसी प्रकार जुड़े रहे हैं। वे मेरी तरह “बाहरी” नहीं हैं।
