मेरी पत्नीजी के पास इस बागवानी विधा और उसमें पलते जीवजंतुओं के बहुत से अनुभव हैं और बहुत सी कहानियां भी। वे उन्हें ब्लॉग पर प्रस्तुत करें तो छोटे-मोटे रस्किन बॉण्ड जैसा काम हो सकता है। पर पता नहीं उनका यह करने का मन होगा या नहीं। ….
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महुआ, हिंगुआ और गड़ौली धाम
हिंगुआ का चित्र लेने के लिये मैं घुटनों के बल जमीन पर बैठता हूं। मोबाइल को गिरने से बचाते हुये कठिनाई से चित्र ले पाता हूं। उम्र बढ़ रही है जीडी।
हिंगुआ का चित्र लेने के लिये झुकना – ज्यादा समय नहीं कर पाओगे!
एक ब्लॉग पोस्ट को कितने चित्र चाहियें?
पत्नीजी और बिटिया की ‘चढ़ाई’ को अहमियत दो पर उससे कुण्ठित होने या अड़ियल टट्टू की तरह न मानने की जरूरत नहीं है। … पांड़े जी; निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय! वे तुमारी जिंदगी के थर्ड-फोर्थ फेज के सबसे बड़े साथी हैं!
