स्वैच्छिक लॉकडाउन या अपने पर ओढ़ा एकांतवास #गांवकाचिठ्ठा


पछुआ हवा है। लू बह रही है। वे भविष्यवक्ता जो कह रहे थे कि तापक्रम बढ़ते ही कोरोनावायरस अपने आप खतम हो जायेगा, अपनी खीस निपोर रहे हैं। ज्योतिषी लोग अपने अपने गोलपोस्ट बदल रहे हैं।

लॉकडाउन 3.0 में #गांवदेहात का माहौल


अब बशीर बद्र की पंक्तियाँ, संशोधन कर, गांव के लिये भी लागू हो रही हैं – कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से। ये कोरोना काल का गांव है; ज़रा फ़ासले से मिला करो।

दस दिवसीय दाह संस्कार क्वारेण्टाइन – शोक, परंपरा और रूढ़ियां


पिताजी की याद में कई बार मन खिन्न होता है. पर उनकी बीमारी में भी जो मेरा परिवार और मैं लगे रहे, उसका सार्थक पक्ष यह है कि मन पर कोई अपराध बोध नहीं हावी हो रहा.

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