सुग्गी बहुत वाचाल है। कहती जाती है – “जीजी, बहुत काम है। मरने की फुर्सत नहीं है।” पर फिर भी रुक कर बातें खूब करती है। कई बार तो बातें खत्म कर जाने लगती है तब कुछ और याद आ जाने पर वापस लौट कर बताने-बतियाने लगती है।
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घुमंतू ऊंट वाले
इतना जरूर समझ आया कि पेट पालने को बहुतेरे उद्यम हैं। और उसके लिये सरकार को निहोरते निठल्लों की तरह बैठा रहना कोई सम्मानजनक समाधान नहीं है। आपके पास ऊंट हो तो ऊंट से, गदहे से, वाहन या सग्गड़ (ठेला) से सामान ढो कर अर्जन किया जा सकता है।
मोहनलाल, सूप वाला
गजब के आदमी मिले सवेरे सवेरे मोहनलाल। आशा और आत्मविश्वास से परिपूर्ण। कर्मठता और जिन्दगी के प्रति सकारात्मक नजरिये से युक्त। इस इलाके के निठल्ले नौजवानों के लिये एक मिसाल।
घासफूस बीनना, फिर घर के काम; जिंदगी कठिन है!
दलित बस्ती की महिलायें; अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर पर रहती और घासफूस बीन कर खाना बनाने का ईंधन और सर्दी से बचने का इंतजाम करती महिलायें; उन्हे भी मोदी नाम का नेता पता है जो शायद उनके बारे में सोच सकता है। मुझे लगा कि मोदी की सबसे बड़ी राजनैतिक ताकत तो यह बन गयी है!
सीएसआर और गांव में लगी बेंचें
छोटे बदलाव, उनके Nudge Effects बहुत महत्वपूर्ण हैं सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए। आज छह बेंचें लगी हैं। इनकी संख्या बढ़ कर 30 – 40 हो जानी चाहिए।
दार्शनिक, कारोबारी या बाहुबली #गांवकाचिठ्ठा
उसने उत्तर देने के पहले मुंह से पीक थूंकी। शायद मुंह में सुरती थी या पान। फिर उत्तर दिया – “सोचना क्या है। देख रहे हैं, काम करने वाले आ जाएं, नावें तैयार हो कर उस पार रवाना हो जाएं। आज काम शुरू हो जाए। बस।