कोविड19 का प्रसार पिछले दो दिनों में तेजी से हुआ है। तबलीगी जमात की कृपा (?) से मामले तेजी से बढ़े और पूरे देश को इन लोगों ने धांग दिया। टेस्टिंग की सुविधायें भारत में वैसे भी ज्यादा नहींं थीं। उनपर दबाव और बढ़ गया। शायद एक तिहाई टेस्टिंग तबलीगी जड़ता को समर्पित हो गयी। पुलीस अपना जरूरी काम छोड़ मस्जिदों को खंगालने लगी। यह तबका सहयोग ही नहीं कर रहा था। इंदौर में तो इन शूरवीरों ने नर्सों-डाक्टरों-आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पत्थर मारे और दौड़ाया। अन्य स्थानों पर इन महानुभावों द्वारा पुलीस पर थूकने, नर्सों से अश्लील इशारे करने और डाक्टरों से अभद्र बर्ताव करने के केस भी सामने आये हैं। लॉकडाउन को पर्याप्त क्षति पंहुचाई है इस जमात ने।
फलस्वरूप, कोरोनावायरस ग्रसित लोगों के मामले 1250 के आसपास थे, वे तीन दिन में बढ़ कर दुगने हो गये।

मैं यहां पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गांव में बैठा हूं। उत्तर प्रदेश में कोविड19 के कुल 127 मामले हैं और भदोही जिले का मेरा यह इलाका अभी कोविड19 के संक्रमण से अछूता है। लोग फिर भी लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और व्यक्तिगत सतर्कता बरत रहे हैं। अधिकांश लोग जो दिखते हैं, मुंह पर कोई न कोई कपड़ा लगाये होते हैं। घर में किराना, सब्जी और फल लाने वाले व्यक्ति सामान रख देते हैं और उसके विनिमय में रखे पैसे ऐसी सतर्कता से उठाते हैं, जिससे हाथ न छू जाये। आज तो किराने वाला मेरे गेट के बाहर ही खड़ा रहा – पर्याप्त दूरी बना कर।
हर व्यक्ति जीवन पर संकट महसूस कर रहा है यहां। ऐसे में टेलीविजन पर दिख रहा तबलीगी ब्रेवेडो समझ नहीं आता…
अब जा कर तबलीगी जमात के चीफ मौलाना साद ने एक ऑडियो जारी किया है, जिसमें सरकार से सहयोग की बात कही है। अब उनका वह कहना कि “अल्लाह मस्जिद में उनकी रक्षा करेगा” हवा हो गया है। बकौल उनके वे “डाक्टर की सलाह पर सेल्फ क्वारेण्टाइन” में हैं। जीवन के भय से जड़मति होई सुजान!

पर भारत में कुछ न कुछ अलग सा जरूर है। हिंदुस्तान टाइम्स में नरिंदर कुमार मेहरा जी का लेख है – कैन इण्डिया बी एन ऑउटलायर इन स्प्रेड ऑफ कोविड19? वे एक इम्युनोलॉजिस्ट हैं। मेहरा जी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान सन्स्थान (एम्स) के डीन रह चुके हैं।
उनके अनुसार भारत वालों ने युगों युगों से भांति भांति की बीमारियाँ/महामारियाँ झेल रखी हैं। हमारे यहां टीबी, हैजा, एड्स और मलेरिया आदि फैलते ही रहे हैं। उनकी दवायें लोगों ने बहुत सेवन कर रखी हैं। उससे किसी नई महा/विश्व मारी (epidemic) के लिये हमारी इम्यूनिटी बढ़ गयी है।
इसके अलावा पीढ़ियों से झेलते हुए शायद हमारे जीन्स में भी व्यापक सकारात्मक परिवर्तन हो गये हैं।

मेरे रिटायर्ड स्कूल टीचर मित्र श्री गुन्नीलाल पाण्डेय जब कह रहे थे कि काशी-विंध्याचल-प्रयाग की इस धरती पर कोरोना का असर नहीं होगा तो वे लगता है वे अचेतन में यह महसूस करते थे कि इस गांगेय क्षेत्र में इस तरह की क्षेत्र/परिस्थिति/जीन्स विषयक इम्यूनिटी है।
मेहरा जी का लेख एक और बात की ओर इंगित करना है। भारत के लोगों में मसालों का प्रचुर प्रयोग शायद उन्हें इस प्रकार की रोग प्रतिरोधक क्षमता देता है। उससे कोरोना वायरस के ग्रसित लोग; बढ़ी उम्र और को-मॉर्बिडिटी (अन्य रोगों यथा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, किडनी की समस्या आदि) होने के बावजूद बीमार होने पर उबर गये और उनको वेण्टीलेटर की जरूरत पश्चिमी देशों की अपेक्षा कहीं कम पड़ी।

मेरी पत्नीजी हर रोज यह जोर देती हैं कि हम हल्दी पियें। रात में दूध के साथ या गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच हल्दी का सेवन करें। चाय में अदरक-काली मिर्च-इलायची डालें। सवेरे एक दो कली लहसुन खाली पेट पानी के साथ गटकें। बिना कुछ खाये एक लोटा (तीन-चार गिलास) पानी आधा नींंबू निचोड़ कर पी जायें।
जब मैंने उनसे नरिंदर कुमार मेहरा जी के लेख का जिक्र किया तो उनका कहना था – “वैसे तो तुम मेरी कोई बात मानते नहीं हो; पर जब उसे कोई अंगरेजी के लेख में लिख कर सामने रख दे, तो उसके गुण गाने लगते हो”।

गांव-पड़ोस के राजन भाई सवेरे शाम चाय पीने आते हैं। साथ में अपने घर नीम के पेड़ पर फ़ैली गिलोय/गुरुच की नरम डण्डी लिये आते हैं। उनका कहना है कि हम चार अंगुल गिलोय की डण्डी कूंच कर पानी में उबाल/छान कर पिया करें। इससे कई रोगों के प्रति इम्यूनिटी बढ़ेगी। … अभी तक उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया था, पर अब देने का मन बना लिया है। गिलोय की डण्डी को नीम के पास जमीन में रोप कर घर में गुरुच की लता तैयार करने की भी सोची है। चाय बनाते समय अदरक-काली मिर्च-इलायची के साथ साथ गुरुच भी कूंच कर मिलाने के प्रयोग अब होंगे।

आज भारतीय समाज/मानस के इम्यून सिस्टम के प्रति जिज्ञासा और आदर दोनो बढ़ गये हैं। लॉकडाउन के बाकी बचे दिनों में “मेरे इम्यूनिटी के प्रयोग” फेज की गतिविधियां होंगी! 😆
अभी कल रात ही एक बैंगलोर निवासी मित्र से लंबी बातचीत के बाद दोनों इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि वैक्सीन बनने में डेढ़ साल लगेगा और ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल बनने में भी कम से कम छह महीने, यानी हर भारतीय इसकी गिरफ्त में तो आएगा ही, ऐसे में बचने के लिए अपने इम्युन सिस्टम को और बेहतर बनाने के लिए गिलोय का प्रयोग शुरू करना चाहिए।
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