सुनील ओझा जी और गाय पर निर्भर गांव का जीवन


इस इलाके की देसी गौ आर्धारित अर्थव्यवस्था पर ओझा जी की दृढ़ सोच पर अपनी आशंकाओं के बावजूद मुझे लगा कि उनकी बात में एक कंविक्शन है, जो कोरा आदर्शवाद नहीं हो सकता। उनकी क्षमता भी ऐसी लगती है कि वे गायपालन के मॉडल पर प्रयोग कर सकें और उसके सफल होने के बाद उसे भारत के अन्य भागों में रिप्लीकेट करा सकें।

सहस्त्रार्जुन की राजधानी माहिष्मती (माहेश्वर)


लम्बी चौड़ी योजना बनाने वाला (पढ़ें – मेरे जैसा व्यक्ति) यात्रा पर नहीं निकलता। यात्रा पर प्रेमसागर जैसा व्यक्ति निकलता है जो मन बनने पर निकल पड़ता है। सो, प्रेमसागर मन बनने के साथ ही आगे की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ेंगे।

वृद्धा बोलीं आगे पीछे की 14 पुश्तें तर जायेंगी!


माताजी एक ठो बात और बोलीं – “बेटा जो यह बारहों ज्योतिर्लिंग यात्रा कर रहे हो, उससे तुम्हारा चौदह पुश्त पहले का और चौदह पुश्त बाद का भी तर जायेगा!
सहायता करने वालों के लिये बोलीं – उन लोगों का पूर्वजनम का जो भी पाप होगा, वह धुल जायेगा। वे फिर कभी जनम नहीं लेंगे।”

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