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मैं ओ.एस. बालकुंदन फाउण्डेशन की गतिविधियों की टोह लेने के लिये निकला आज साइकिल सैर में। कमहरिया और अगियाबीर के बीच गडौली पंचायत में यह स्थान – जहां बहुत बड़े स्तर पर गौ-गंगा-गौरीशंकर की थीम पर बहुत कुछ बनने जा रहा है – मेरे लिये कौतूहल का विषय है। बड़े बड़े राजनीति से जुड़े लोग वहां अपने जुगाड़ में चक्कर मार रहे हैं, ऐसा मुझे पता चला। मेरा तो कोई राजसिक ध्येय नहीं है, पर अपने साइकिल भ्रमण क्षेत्र में कुछ होने जा रहा है, इसकी जानकारी होनी चाहिये, वह कौतूहल मन में है।

वैसे बताया गया कि सुनील ओझा जी हैं जो इस प्रॉजेक्ट के काम धाम नियन्ता हैं। गौ-गंगा-गौरीशंकर की इस विशाल प्रॉजेक्ट की परिकल्पना उनकी है या प्रधानमंत्री जी की; यह मुझे नहीं मालुम। पर वृहत स्तर पर वाराणसी और प्रयाग के बीच कुछ बनने जा रहा है। इसके पीछे जो भी व्यक्ति या विचारधारा हो, वह छुद्र-संकीर्ण या तात्कालिक/व्यवसायिक मात्र लाभ का ध्येय रखने वाले की नहीं हो सकती।



मै ऊपर के तीन पैराग्राफ में जो लिख चुका हूं, वह अगर पढ़ने वाले को स्पष्ट न हो रहा हू, तो उसमें गलती मेरी है। मुझे खुद नहीं मालुम इस प्रॉजेक्ट का ध्येय। मैं सोचता था कि कोई व्यवसायी अपना पैसा लगा कर इलाके के टूरिस्ट पोटेंशियल का दोहन करना चाहता है। पर उसमें गौशाला या अस्पताल जैसी चीज का निर्माण फिट नहीं बैठता। कौन व्यवसायी इस तरह की चीज में पैसा फंसायेगा?

जो मुझे पता चला है उसके अनुसार कमहरिया-देवकली-अगियाबीर के एक बड़े इलाके में; गंगा किनारे; निम्न विकसित होने जा रहे हैं –
- गंगा तट पर त्रिशूल की दो भुजाओं की नोकों में से एक (प्रयाग छोर) पर गौरीशंकर की 108 फुट की प्रतिमा और दूसरी नोक (वाराणसी छोर) पर महादेव मंदिर।
- त्रिशूल की बीच की नोक पर एक ओपन एयर थियेटर।
- गंगाजी पर विस्तृत घाट और नदी के दूसरी ओर टूरिस्ट स्पॉट।
- गौशाला और कृष्ण जी की प्रतिमा
- वृद्धाश्रम – नंदन वन।
- आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा और ध्यान केंद्र आदि
सतीश सिंह वहां मिले। वे पास के गांव कमहरिया के हैं। रोज वहां जो हो रहा है, वह बताने के लिये वे सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। उनसे मैं कुछ दिन पहले मिल चुका हूं। वे गौरीशंकर की जो 108 फिट ऊंची प्रतिमा बनने जा रही है, उस प्रतिमा के (कल्पना अनुसार बनाये) चित्र की आरती कर रहे थे। सतीश प्रॉजेक्ट के लिये प्रतिबद्ध व्यक्ति हैं। सरल आदमी। राजनैतिक दंदफंद से असंपृक्त। इस तरह के कार्य की देखरेख के लिये ऐसा ही व्यक्ति चाहिये। सही आदमी चुना है सही जगह के लिये; उसने जो भी ट्रस्ट का देख रेख करने वाले हैं।

सतीश जी से बातचीत के दौरान मैंने जिक्र किया प्रेमसागर की द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा का। उसी सिलसिले में सतीश जी ने बताया कि वे भी भारत-भ्रमण की लम्बी यात्रायें कर चुके हैं। वह भी अपनी साइकिल से। साइकिल से 1996 से यात्रायें करते रहे हैं। सबसे पहले वे वैष्णो देवी तक गये थे। उन्हें यात्रा प्रारम्भ की तारीख याद है – दस अगस्त 1996। उसके बाद साइकिल से मैहर-चित्रकूट की यात्रा किये। सन 2001 में वे पशुपति नाथ की साइकिल यात्रा किये। ये सभी यात्रायें बिल्कुल अन-प्लाण्ड तरीके से हुईं। लोगों ने कहा कि डीएम से प्रमाण पत्र ले कर यात्रा करो, पर वह सब नहीं हुआ। जब मन किया साइकिल उठाये और एक दो साथी साथ में तैयार कर चल दिये।
सन 2001 के बाद क्या क्या यात्रायें की?
सतीश जी ने कहा – “आप विधिवत पूछ रहे हैं तो मैं अपनी डायरी खोल कर बताऊंगा। मैंने उसमें मोटा मोटा विवरण लिखा हुआ है। उसमें पूरी यात्रा का विवरण नहीं है, पर डायरी देख कर वह सब याद आ जायेगा। जिस साइकिल पर मैंने 1996 में यात्रा की है, वही आज भी मेरे पास है। घर बार को छोड़ छाड़ यात्रायें करने के कारण घर में भी मुझे अलग थलग मान लिया गया है। और अब तो इस स्थान पर काम-धाम में राम गया हूं। सांसारिक लोग इस तरह के आनंद को समझ नहीं पाते। दुनियादारी, उसकी उपलब्धियों की कीमत होती है। लोगों के लिये मेरी तरह का जीवन यह सिरफिरा होने की निशानी है!”

मेरे साथ गुन्नीलाल पांड़े जी थे। उन्होने मेरे बारे में बताया कि सरकारी नौकरी, उसकी प्रभुता के बाद शहर में न रह कर मैं साइकिल ले कर मौज में घूम-देख रहा हूं। सतीश जी को मेरी और अपनी वृत्ति में साम्य नजर आया। मुझे भी लगा, और उनसे कहा भी, कि उनसे आगे बार बार मिल कर उनकी यात्राओं और उनकी जीवन शैली के बारें में समझने और लिखने का मन है। प्रेमसागर छूटेंगे – या उनके साथ साथ सतीश सिंह के बारे में लिख कर ब्लॉग समृद्ध होगा।
मैं जब वहां से घर के लिये रवाना हुआ तो लगा कि आजकल भगवान मुझे लम्बी यात्रा करने वालों के उदाहरण दिये चले जा रहे हैं। पतले दुबले सतीश सिंह की छवि मन में बनी रही। उन्हीं की याद करते हुये मैंने अगियाबीर-द्वारिकापुर का नाला साइकिल घसीटते हुये पार किया। साइकिल सतीश और मैं – साथ साथ बने रहे। अब सतीश से सम्पर्क होता रहेगा।
वहां गया था मैं गौ गंगा गौरीशंकर के बारे में जानकारी लेने और लौटा सतीश से आत्मीय भाव ले कर!

वाह, नन्दन वन के चन्दन व्याख्यान पर ब्लाग का प्रबन्ध हो गया अब तो।
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अभी सप्ताह में एक चक्कर तो वहां लगेगा ही. 😊
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दिनेश कुमार शुक्ल, फेस बुक पेज पर –
यही लोग तो धरती को धारण किए हुए हैं,यही दिक्पाल हैं। ये अलक्ष्य अगोचर रहते हुए चुपचाप सत्कर्म में लीन रहते हैं।बड़भागी हैं महराज आप कि ऐसे लोगों की महिमा लोक में पहुंचाते रहते हैं।हर हर महादेव।
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