आगे के जीवन के बारे में नजरिया बदला लगता है। पहले जीवन की दीर्घायु के लक्ष धुंधले लगते थे; अब उनमें स्पष्टता आती जा रही है। नकारात्मकता को चिमटी से पकड़ कर बाहर निकालने की इच्छा-शक्ति प्रबल होती जा रही है।
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बनियान में छेद
साबुन की बट्टी के ऑप्टिमल खर्च पर भी एक शोध करना है। अभी तीन बनियान नई खरीदी हैं जिनका प्रयोग पोस्ट स्वावलम्बन युग में होगा। उनकी दीर्घजीविता और उनके छेदों के आकार प्रकार पर भी अध्ययन होगा।
मिश्रीलाल सोनकर से एक और मुलाकात
पचासी साल का आदमी, अपने बारे में लिखा देख और सुन कर कितना प्रसन्न होता है, वह अहसास मुझे हुआ। उनकी वाणी मुखर हो गयी। बताया कि अपनी जवानी में वे मुगदर भांजा करते थे। “सामने क लोग मसड़ (मच्छर) अस लागत रहें तब।”
