अरे वह क्रियेटिव – फन ही नहीं, देने की प्रसन्नता की आदत विकसित करना भी था।


आनंद को केंद्र में रख कर अपनी आदतें ढालने की एक सयास कोशिश की जा रही है। विचार यह है कि हम उसे पैसा खर्च कर, सामान खरीद कर, मार्केटिंग कर या इधर उधर की बतकही/परनिंदा कर नहीं, विशुद्ध प्रसन्नता की आदतें विकसित करने से करेंगे।

उज्जैन के रेलवे गुड्स यार्ड की यादें


उज्जैन गुड्स यार्ड, जिसे एन सी यार्ड कहा जाता था, ने मुझे रेलवे संस्कृति के बारे में बहुत कुछ सिखाया। एन सी यार्ड का मतलब था Newly Constructed Yard. नया बना होगा, पर बहुत जल्दी रेलवे का फुटकर लदान का युग खत्म हो गया। … उज्जैन ही नहीं; पूरी रेलवे के यार्ड अपनी महत्ता खो बैठे।

रेणु की “एक आदिम रात्रि की महक” से उभरी रेल यादें


उसी दौरान मैं माही नदी के किनारे बहुत घूमा। उसके दृष्य अभी भी याद हैं। माही नदी में एक बरसाती नदी “लाड़की” आ कर मिलती थी। मेरे मन में यह भी साध बाकी रही कि चल कर लाड़की का उद्गम स्थल देखूं।

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