मेरे व्यक्तित्व में कुछ है जिसे किसी बैरियर पर चेक किया जाना अच्छा नहीं लगता। रेलवे का आदमी हूं और कभी न कभी टिकेट चेकर्स मेरे कर्मचारी हुआ करते थे। पर खुद मुझे टिकेट चेक कराना बहुत खराब लगता है।
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साइकिल सैर की एक दोपहर – विचित्र अनुभव
वे दम्पति भारत के उस पक्ष को दिखाते हैं जो जाहिल-काहिल-नीच-संकुचित है। भारत अगर प्रगति नहीं करता तो ऐसे लोगों के कारण ही।
सुनील ओझा जी और गाय पर निर्भर गांव का जीवन
इस इलाके की देसी गौ आर्धारित अर्थव्यवस्था पर ओझा जी की दृढ़ सोच पर अपनी आशंकाओं के बावजूद मुझे लगा कि उनकी बात में एक कंविक्शन है, जो कोरा आदर्शवाद नहीं हो सकता। उनकी क्षमता भी ऐसी लगती है कि वे गायपालन के मॉडल पर प्रयोग कर सकें और उसके सफल होने के बाद उसे भारत के अन्य भागों में रिप्लीकेट करा सकें।
